ऑनलाइन पढ़ाई से ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों का भविष्य दांव पर-संजय पराशर
ऑनलाइन पढ़ाई से ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों का भविष्य दांव पर-संजय पराशर
-विद्यार्थियों को लंबे समय तक शिक्षण संस्थानों से दूर रखने का होगा दूरगामी असर
डाडासीबा-
कैप्टन संजय पराशर ने कहा है कि ऑनलाईन पढ़ाई से विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों का भविष्य दांव पर लगता हुआ दिखाई दे रहा है। सच तो यह भी है ऑनलाइन शिक्षा के बाद से विद्यार्थियों में असमानता बढ़ी है और यह आगे चलकर बहुत हानिकारक हो सकती है। ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों के पास संसाधनों की कमी तो है ही, साथ ही कई ऐसी सुविधाएं हैं, जो उन्हें नहीं मिल पाती हैं। बुधवार को जसवां-परागपुर क्षेत्र के रक्कड़, रजियाणा, स्वाणा, दड़ब, कस्बा कोटला और मलोट गांवों में ‘ऑनलाइन शिक्षा के प्रभाव’ विषय पर अभिभावकों से सीधा संवाद करते हुए पराशर ने कहा कि विद्यार्थियों को लंबे समय तक शिक्षण संस्थानों से दूर रखने के दूरगामी व नकारात्मक असर होंगे। जसवां-परागपुर क्षेत्र में कई गांव ऐसे हैं जहां इंटरनेट की बेहद समस्या है। अगर कलोहा गांव के विद्यार्थी खड्ड में जाकर मोबाइल सिग्नल ढूंढकर पढ़ाई करने को मजबूर हैं तो समझा जा सकता है कि व्यवस्था पटरी से किस हद तक उतर चुकी है। इसके अलावा स्मार्टफोन का न होना और कई आर्थिक कारण ऐसे हैं, जिससे गरीब परिवारों के बच्चे पढ़ाई से दूर होते जा रहे हैं। पराशर ने कहा कि जब कोरोनाकाल में विद्यालय बंद हुए तो ऐसी उम्मीद कतई नहीं थी कि डेढ़ वर्ष से ज्यादा समय तक छात्र स्कूल प्रांगण में नहीं जा पाएंगे। अब हालात ऐसे हैं कि विद्यार्थियों की पढ़ाई में असमानता काफी देखने को मिल रही है। जिन बच्चों के पास साधन नहीं है, वो इस अंतराल में बुरी तरह से पिछड़ गए हैं और इसकी भरपाई कर पाना आसान नहीं होगा। जो असमानता सामाजिक स्तर पर देखने को मिल रही थी, वहीं हालात स्कूली शिक्षा में दिखना शुरू हो गए हैं। अच्छा होता कि सरकार इन समस्याओं की तरफ समय रहते ध्यान देती, लेकिन सिर्फ स्कूल कब तक बंद रखने हैं, इस पर ही विचार-विमर्श हो रहा है। जबिक सच यह है कि ऑनलाइन शिक्षा की वजह से हम अपने बच्चों में मोटापा, माइग्रेन, सीखने की क्षमता में कमी और अनुचित एक्सपोजर जैसे परिणाम देख रहे हैं। विभिन्न सर्वेक्षणों में भी यह बात सामने आई है कि काेरोना के बाद साक्षरता दर में कमी आई है। पराशर ने कहा कि बच्चों को ऑनलाइन स्कूल से वास्तविक स्कूल में भेजना बच्चों के साथ अभिभावकों, शिक्षकों और सरकार के लिए एक बड़ा काम है। संक्रमण को फैलने से रोकना भी बहुत जरूरी है, लेकिन इसके साथ ही सीखने की क्षमता के नुकसान और संभावित दृष्टिकोणों पर कुछ आवाजें भी उठने लगी हैं। उम्मीद है कि सरकार में इस तरफ भी गंभीरता से ध्यान देगी। इस मौके पर अभिभावकों सुरेश, रेखा, किरण, अनुज, वीना देवी, राजेन्द्र और सतीश ने भी ऑनलाइन पढ़ाई की बजाय शिक्षण संस्थान खोलने के विकल्पों पर सहमति जताते हुए कहा कि अरसे तक स्कूलों को बंद नहीं किया जा सकता। सरकार को इस पर अब ठोस निर्णय लेना ही चाहिए।