Punjab

कुछ सियासी परिवारों की सरदारी हाशिये पर?

                                                                                                                                                                संजीव पांडेय
पंजाब में चुनाव परिणाम चाहे जो भी आए, लेकिन 2022 में पंजाब में एक राजनीतिक परिणाम आना तय है। पंजाब की राजनीति पर कई दशकों से राज कर रहे कुछ जमींदार परिवारों की राजनीतिक सरदारी कमजोर होगी। जिन परिवारों की राजनीतिक सरदारी इस बार कमजोर होगी उसमें बादल परिवार, महाराजा पटियाला परिवार, कैरों परिवार शामिल है। एक और राजनीतिक परिवार हरचरण सिंह बराड़ परिवार की सरदारी लगभग खात्म की तरफ है। पंजाब की फैमिली यहां की राजनीति को लंबे समय से कंट्रोल करती रही है। दिलचस्प बात है कि ये परिवार पंजाब के बड़े जमींदार परिवार रहे है। इससे भी बड़ी दिलचस्प बात यह है कि ये सारे परिवारों की आपस में रिश्तेदारियां है। बेशक ये अलग-अलग राजनीतिक दलों मे जाकर अपनी राजनीति करते रहे है, लेकिन मौके पर एक दूसरे के राजनीतिक वजूद बचाने के लिए एक दूसरे की मदद भी करते रहे है। इन परिवारों की एक और बडी खासियत रही है कि जब भी पंजाब की राजनीति में कोई आम परिवार का व्यक्ति नेता बनकर उभरा तो उसे खत्म करने के लिए ये सारे परिवार इकट्ठे हो गए। कई नेताओं को हाशिए पर लाने में इन परिवारों की अहम भूमिका रही है।
पिछले कई दशकों से पंजाब की राजनीति कुछ परिवारों के इर्द-गिर्द घूमती रही है। प्रकाश सिंह बादल, हरचरण सिंह बराड़, प्रताप सिंह कैरों और अमरिंदर सिंह परिवार ने लंबे समय तक पंजाब की राजनीति पर अपना दबदबा बनाए रखा है। लेकिन इस बार इनकी पॉलिटिक्स आम नेताओं से चुनौती मिल रही है। कांग्रेस ने जहां चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाकर परंपरागत राजनीतिक परिवारों की राजनीति को कमजोर किया है, वहीं आम आदमी पार्टी ने एक बहुत ही समान्य किसान परिवार के भगवंत मान को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बनाकर इन परिवारों की पॉलिटिक्स को चुनौती दी है। अब इन परिवारों के  उतराधिकारियों के सामने अपने राजनीतिक कद को बचाए रखने की बडी चुनौती है। चाहे वे सुखबीर बादल हो या रण इंदर सिंह हो या आदेश प्रताप सिंह कैरों हो।
मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल लंबे समय तक पंजाब की राजनीति को कंट्रोल करते रहे। वे पंजाब में लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे। अन्य क्षेत्रीए दलों के नेताओं की तरह ही बादल ने अकाली दल को अपनी जेब की पार्टी बनाया। दूसरे क्षेत्रीए दलों के नेताओं की तरह अपने बेटे सुखबीर बादल को अकाली दल सौंप दिया। हलांकि प्रकाश सिंह बादल ने सुखबीर बादल को अकाली दल का सरदार तो बना दिया, लेकिन उन्हें पंजाब का सरदार नहीं बना पाए। इस बार सुखबीर बादल पंजाब का सरदार बनने की कोशिश कर रहे है। लेकिन फिलहाल उनकी पार्टी पंजाब में तीसरे नंबर पर नजर आ रही है। दरअसल प्रकाश सिंह बादल ने ब्रिटिश शासन के दौरान एक बड़े मूवमेंट से बनायी गई पार्टी को अपने परिवार की पार्टी बना ली। 2007 में जब बादल खुद सीएम बने तो बेटे सुखबीर बादल को डिप्टी सीएम बना दिया। बेटे के साले विक्रम सिंह मजिठिया को मंत्री बना दिया। बेटे की पत्नी हरसिमरत कौर को केंद्र की राजनीति में अकाली दल की सरदारी दे दी।
इधर कांग्रेस पार्टी के सहारे पंजाब में लंबे समय तक अपनी सरदारी कायम रखने वाले अमरिंदर सिंह उम्र के अंतिम पड़ाव में राजनीतिक तौर पर हाशिए पर आ गए है। उन्हें अब अपनी पटियाला की विधानसभा सीट बचाने के लिए जद्दोजहद करनी प़ड़ रही है। लंबे समय से पंजाब की राजनीति पर अपनी पकड़ रखने वाले अमरिंदर सिंह को अपने परिवार को पंजाब की राजनीति में स्थापित करने में काफी दिक्कत आ रही है। अमरिंदर सिंह अपने बेटे, बेटी औऱ नाती को पंजाब की राजनीति में मजबूत करना चाहते है, लेकिन राजनीतिक माहौल अब उनके खिलाफ है। उधर पंजाब की राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले दो और परिवार हाशिए पर आ चुका है। पूर्व मुख्यमंत्री हरचरण सिंह बराड़ औऱ प्रताप सिंह कैरों के परिवार की राजनीतिक सरदारी भी अब खात्मे की तरफ है। हरचरण सिंह बराड़ के परिवार को टिकट के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। इस बार हरचरण सिंह बराड़ परिवार की करण कौर बराड़ को टिकट के लिए ही कांग्रेस में संघर्ष करना प़ड़ रहा है। जबकि पूर्व मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों के पोते आदेश प्रताप सिंह को भी चुनावी जीत के लिए काफ़ी मेहनत करनी पड़ रहा है। आदेश प्रताप सिंह कैरों पिछला विधानसभा चुनाव  अपने विधानसभा क्षेत्र से हार गए थे। इस बार फिर वे चुनाव जीत पाएंगे तो सरदारी बचेगी रहेगी, नहीं तो सरदारी खत्म हो जाएगी है। आदेश प्रताप कैरों जहां प्रताप सिंह कैरो के पोते है वहीं प्रकाश सिंह बादल के दमाद भी है।
इन राजनीतिक परिवारों के लिए सबसे बुरी खबर यह है कि राजनीतिक मोर्चे पर आम नेताओं ने उन्हें चुनौती दे दी है। भगवंत मान साधारण किसान परिवार से है। उधर चरणजीत चन्नी ने भी अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत आम राजनीतिक कार्यकर्ता के तौर पर की थी। चन्नी वर्तमान में पंजाब के पहले दलित मुख्यमंत्री है, जो कई दशकों से पंजाब पर राज कर रहे इन राजनीतिक परिवारों के लिए अच्छी खबर नहीं है। हालांकि पहले भी कुछ साधारण परिवार से निकले नेताओं ने मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल की। लेकिन लंबे समय तक उनका राजनीतिक वर्चस्व कायम नहीं रहा। कांग्रेस में बेअंत सिंह और राजिंदर कौऱ भट्टल का राजनीतिक सफर साधारण कार्यकर्ता के तौर पर शुरू हुआ था। ये दोनों मुख्यमंत्री भी बने। लेकिन अमरिंदर, बादल, कैरों परिवार के तर्ज पर राजनीतिक वर्चस्व बनाए रखने में ये दोनों विफल रहे। इन दोनों ने आम राजनीतिक कार्यकर्ता के तौर  कांग्रेस में काम शुरू किया। लेकिन बाद में इन दोनों पूर्व मुख्यमंत्रियों के परिवारों ने फ्यूडल पॉलिटिक्स का अनुसरण करते हुए पॉलिटिक्ल पद हासिल करने की कोशिश की। इन्हें कुछ हद तक सफलता भी मिली। बेअंत सिंह के बेटे तेजप्रकाश सिंह पंजाब में मंत्री रहे। जबकि बेअंत सिंह का एक पोता रवनीत बिटटू एमपी है। एक पोता गुरकीरत कोटली पंजाब में मंत्री है। राजिंदर कौर भट्टल अपने दामाद को राजनीति में स्थापित करने की असफल कोशिश कर चुकी है।

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