पीस और स्टेबिलिटी लाने के लिए गले मिलने में क्या गुनाह?
संजीव पांडेय
क्रिकेटर से नेता बने नवजोत सिदू फिर विवादों में है। इमरान खान को बडा भाई संबोधित करना उन्हें महंगा पड गया है। वे अपने ही पार्टी के कुछ नेताओं के निशाने पर है। विपक्षी भाजपा को भी इमरान को बड़ा भाई कहना नागवार गुजरा है। भाजपा नेताओं ने तो सिदू पर निशाना साधते हुए पाकिस्तानी आर्मी चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा और सिदू के बीच हुई गलबहियां को भी याद किया है। सवाल यही है कि क्या दुश्मन मुल्क के प्रधानमंत्री को बड़ा भाई कहना या या दुश्मन मुल्क के आर्मी चीफ को गला लगाने भर से आप किसी को राष्ट्रद्रोही कह सकते है ? क्योंकि किसी के गले लगने से क्षेत्रीए शांति के प्रयास तेज होंगे तो इसका लाभ तो आम अवाम को ही मिलेगा।
इमरान खान को बड़ा भाई बताना या जनरल कमर जावेद बाजवा से गले मिलना अपराध या देशद्रोह के दायरे में कैसे आ सकता है ? क्योंकि गले तो तमाम पाकिस्तान हुक्मरानों के साथ भारतीय हुक्मरान समय-समय पर लगते रहे है। इसमें कोई शक नहीं है कि इमरान खान उस मुल्क के प्रधानमंत्री है, जिसके संबंध भारत से पिछले सात दशकों से खराब है। जनरल बाजवा उस मुल्क के आर्मी चीफ है, जो भारत के खिलाफ लगातार साजिश करता रहा है। इसके बावजूद दोनों मुल्कों के बीच डिप्लोमैटिक रिलेशन कायम है। दोनों मुल्कों की सीमा पर तैनात जवान विभिन्न महत्वपूर्ण दिनों और महत्वपूर्ण त्योहारों पर एक दूसरे को मिठाईयां और फल देते है।
पिछले सात दशकों में विभिन्न अंतराष्ट्रीय मंचों पर दोनों मुल्कों के नेताओं के बीच एक दूसरे बातचीत होती रही है। दोनों मुल्कों के नेताओं ने एक दूसरे को गले भी लगाया है। हाथ भी मिलाया है। कांग्रेस के नेता मनीष तिवारी को शायद पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह याद नहीं है। मनमोहन सिंह अंतराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तानी लीडरशीप से हाथ भी मिलाते रहे। उनसे गले भी मिलते रहे। मनीष तिवारी का सामान्य ज्ञान काफी मजबूत है। वे मनमोहन सिंह के मंत्रिमंडल में भी थे। उन्हें पता है कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पाकिस्तान के पूर्व सैन्य तानाशाह परवेज मुशर्रफ से कश्मीर मसले का हल निकालने के लिए गंभीर बातचीत करते रहे। वे कश्मीर से संबंधित मुशर्रफ प्लॉन पर लगभग तैयार हो गए थे।
मनीष तिवारी पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के नजदीकी है। मनीष तिवारी को यह पता है कि इस समय घोर राष्ट्रवादी बने अमरिंदर सिंह किसी जमाने में दोनों पंजाब के बीच मजबूत रिश्तों के लिए अभियान चलाते रहे। इसके लिए उन्हें पाकिस्तान के पूर्व डिप्टी पीएम परवेज इलाही का जोरदार सहयोग मिला था। 2004 में परवेज इलाही पाकिस्तानी पंजाब के मुख्यमंत्री थे तो अमरिंदर सिंह भारतीय पंजाब के मुख्यमंत्री थे। परवेज इलाही ने फरवरी 2004 में अमरिंदर सिंह का शानदार स्वागत लाहौर में किया था। इसके बाद 2004 दिसंबर में अमरिंदर सिंह ने परवेज इलाही का शानदार स्वागत पटियाला में किया। परवेज इलाही ने पटियाला में आयोजित विश्व पंजाबी कॉन्फ्रेंस में भाग लिया था। दोनों पंजाब के बीच आपसी संबंधों को मजबूत करने के लिए दोनों मुख्यमंत्रियों ने खूब दावे किए थे।
परवेज इलाही पाकिस्तानी पॉलिटिक्स में आईएसआई के प्रतिनिधि माने जाते है। ये चौधरी जहूर इलाही के परिवार से है। सेना में सेवा दे चुके जहूर इलाही को सेना ने पाकिस्तानी पॉलिटिक्स में स्थापित किया। जहूर इलाही का परिवार पंजाब के गुजरात का मशहूर वडैच परिवार है। इसकी राजनीतिक ताकत आज भी पाकिस्तानी पंजाब में है। आईएसआई के सहयोग से पाकिस्तानी राजनीति में स्थापित इलाही परिवार से समय-समय पर नवाज शरीफ, आसिफ अली जरदारी और इमरान खान ने सहयोग लिया। इलाही परिवार के चौधरी शुजात हुसैन और परवेज इलाही का दबदबा आज भी सेना के सहयोग से पाकिस्तानी पंजाब में कायम है।
भाजपा के नेताओं को भी अपनी पार्टी के स्टैंड का ख्याल रखना चाहिए। लाल कृष्ण आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी तो भाजपा के मजबूत स्तंभ रहे है। एलके आडवाणी ने पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना को एक महान नेता बताया था। वे जिन्ना के मजार पर भी गए। उनकी जमकर तारीफ की। जिन्ना को आडवाणी ने सेक्यूलर कहा था। अटल बिहारी वाजपेयी तो आडवाणी से भी आगे निकल गए। यह जानते हुए भी कि परवेज मुशर्रफ ने कारगिल युद की पूरी साजिश रची थी, वाजपेयी ने दिल्ली में उनका शानदार स्वागत किया। बतौर राष्ट्राध्यक्ष परवेज मुशर्रफ का शानदार स्वागत अटल बिहारी वाजपेयी ने दिल्ली में किया था। आगरा में उनके लिए रेड कारपेट बिछा दिया गया था। जबकि मुशर्रफ ने खुद स्वीकार किया था कि कारगिल युद के सूत्रधार वही थे। वे खुद भारतीय सीमा के अंदर आए थे। मुशर्रफ के कार्यकाल में भारतीय संसद पर जैश-ए-मोहम्मद का खतरनाक हमला हुआ था। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाहौर जाकर तत्कालीन नवाज शरीफ को गले लगाया।
वैसे भारत-पाकिस्तान संबंधों की बात होती तो आर्थिक संबंधों को मजबूत करने की बात भी होती है। और जब आर्थिक संबंधों की बात होती है, तो भारत के एक ब़ड़ा कारपोरेट घराना अदानी ग्रुप की बात भी होनी चाहिए। 2014 में अदानी ग्रुप के प्रतिनिधियों ने पाकिस्तान का दौरा कर दोनों मुल्कों के बीच बिजली आदान प्रदान का प्रस्ताव रखा था। अदानी ग्रुप ने पाकिस्तान को 4 हजार मेगावाट बिजली बेचने का प्रस्ताव रखा था। यह वह समय था जब पाकिस्तान में बिजली का संकट था। पाकिस्तान बिजली संकट से निपटने के लिए चीनी बिजली कंपनियों को निवेश के लिए आमंत्रित कर रहा था।
अक्तूबर 2015 में अदानी ग्रुप दवारा पाकिस्तान को बिजली निर्यात का प्रस्ताव का खुलासा तत्कालीन नवाज शरीफ सरकार में उर्जा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने किया था। उन्होंने पाकिस्तान नेशनल असेंबली के अपर हाउस को बताया था कि अदानी इंटरप्राइजेज लिमिटेड के प्रतिनिधि अप्रैल 2014 में भारत से बिजली निर्यात का प्रस्ताव लेकर आए थे। प्रस्ताव में शुरूआती चरण में पाकिस्तान को 500 से 800 मेगावाट बिजली निर्यात का प्रस्ताव रखा गया था। बाद में इसे बढाकर 3500 से 4000 मेगावाट किया जाता। दरअसल पाकिस्तान को बिजली निर्यात का प्रयास 2012 से ही शुरू हो गया था, जब भारत में मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए की सरकार थी। जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार आयी तो इस प्रयास में अदानी ग्रुप ने तेजी लायी।
इसमें कोई शक नहीं है कि जनरल बाजवा उस पाकिस्तानी सेना के मुखिया है, जो भारत विरोधी मानसिकता से ग्रस्त है। उसके बावजूद भारत और पाकिस्तान के बीच दिपक्षीय शांतिवार्ता पिछले कई दशकों से हो रही है। तो फिर सिदू ने बाजवा से गले लगकर क्या अपराध कर दिया ? बाजवा पाकिस्तान के उन सेनाध्यक्षों में शामिल है, जो तनावों के बीच भारत से व्यापारिक साझीदारी को बढाने के समर्थक रहे है। बाजवा डॉक्ट्राइन का एक महत्वपूर्ण प्वाइंट भारत-पाकिस्तान व्यापारिक संबंध को अमेरिका-मेक्सिकों-कनाडा के तर्ज पर विकसित करना है।
करतारपुर कॉरिडोर को महज एक धार्मिक कॉरिडोर नहीं है। यह शांति, समृदि और आर्थिक विकास का कॉरिडोर है। करतारपुर कॉरिडोर दोनों मुल्कों के बीच एक पीस कॉरिडोर है। इस कॉरिडोर से दोनों मुल्कों के बीच समृदि लायी जा सकती है। भविष्य में यह एक महत्वपूर्ण आर्थिक कॉरिडोर के रुप मे विकसित हो सकता है। पंजाब के रास्ते दोनों मुल्कों के बीच अगर व्यापारिक संबंध मजबूत होंगे तो इससे भविष्य में दोनों मुल्कों के बीच शांति कायम करने में खासा सहयोग मिलेगा।
पंजाब की सीमा से आर्थिक कारोबार बढेगा तो इसका लाभ सिर्फ अकेले पंजाब को ही नहीं मिलेगा। इसका लाभ हरियाणा और पश्चिमी उतर प्रदेश में मौजूद मैनुफैक्चरिंग सेक्टर को भी होगा। इसे एक उदाहरण से समझ सकते है। पाकिस्तान की ऑटो इंडस्ट्री लंबे समय गुड़गांव के ऑटो इंडस्ट्री से कारोबार करने को इच्छुक है। गुडगांव स्थित ऑटो इंडस्ट्री से संबंधित सब्सिडरी यूनिटों से पाकिस्तानी ऑटो इंडस्ट्री मोटर पार्टस लंबे समय से आयात करना चाहती है। पाकिस्तानी ऑटो इंडस्ट्री ने इस मुद्दे पर कई बार चर्चा की है। अगर पंजाब के रास्ते पाकिस्तान से व्यापार सुगम होता है तो गुड़गांव और नोएडा के तमाम मैनुफैक्चरिंग यूनिटों को भारी लाभ होगा।
कुछ राजनीतिक दलों को यह गलतफहमी है कि पाकिस्तान के खिलाफ ब्यानबाजी से पंजाब के हिंदू उनके पक्ष में आ जाएंगे। दरअसल इस तरह की सोच रखने वाले राजनीतिक दलों को जमीनी हकीकत की जानकारी बिल्कुल नही है। पंजाब के हिंदू अपने आर्थिक हितों को लेकर सजग है। अमृतसर, जलंधर और लुधियाना के हिंदू व्यापारी पाकिस्तानी सीमा पर तनाव के बजाए शांति चाहता है। वे अटारी समेत कुछ महत्वपूर्ण बॉर्डरों से व्यापार चाहते है।
पंजाब का हिंदू फाजिल्का स्थित सुलेमानकी और फिरोजपुर स्थित हुसैनीवाला बार्डर से भी व्यापार चाहता है। अगर सुलेमानकी और हुसैनीवाला बार्डर से व्यापार शुरू होगा तो इसका सबसे ज्यादा लाभ अबोहर, फाजिल्का, भटिंडा, फिरोजपुर, बीकानेर, गंगानगर के हिंदू व्यापारियों को होगा। पाकिसतान से अगर पंजाब सीमा से ट्रेड बढेगा तो सबसे ज्यादा लाभ पंजाब, राजस्थान, गुजरात और हरियाणा के कपास उत्पादकों को होगा। क्योंकि पाकिस्तान के कपड़ा उधोग में भारतीय कपास की भारी मांग है।