बाबा साहिब डा. अंबेडकर से जुड़े पांच एतिहासिक स्थलों को मोदी सरकार ने दिया पंचतीर्थ का दर्जा : राजेश बाघा
मैं राजेश बाघा महामंत्री भाजपा पंजाब पूर्व में अनुसूचित जाति आयोग पंजाब का चेयरमैन भी रह चुका हूं मुझे अपने जीवनकाल में देश-विदेश के बहुत सारे पर्यटन स्थलों का भ्रमण करने का अवसर प्राप्त हुआ। इन जगहों में मनोरम पहाड़ी क्षेत्रों से लेकर धार्मिक आस्था तथा अध्यात्मिक साधना के केन्द्र भी शामिल रहे हैं। हर जगह का अपना महत्व होता है और इसीलिए हर स्थल पर जाने का अलग अनुभव और अलग अनुभूति अर्थात् मानसिक अथवा आत्मिक संतुष्टि होना स्वभाविक बात है। आज जब सारा देश बाबा साहिब डा. भीम राव अंबेडकर जी की 131वीं जयंती मना रहा है तो बाबा साहिब के देश ही नहीं बल्कि दुनिया भर में बसते करोड़ों अनुयायियों की तरह ही मेरे मन में भी उनके प्रति अथाह श्रद्धा का भाव होने के नाते बाबा साहिब डॉ. अंबेडकर से जुड़े उन प्रमुख स्थलों का स्मरण ताजा हो रहा है जिन्हें केन्द्र की वर्तमान नरेन्द्र मोदी सरकार ने पंचतीर्थ की संज्ञा ही नहीं दी बल्कि इन एतिहासिक स्थलों का जीर्णोद्धार करके इस कदर भव्य रूप भी दिया है कि इन पांच तीर्थ स्थल के दर्शन हेतु आने वाला बाबा साहिब का कोई पैरोकार अथवा पर्यटक अभिभूत हुए बिना नहीं रह सकता। जिसका श्रेय निर्विवाद रूप से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं भाजपा सरकारों को जाता है। इन पंचतीर्थ में सर्वप्रथम स्थान है मध्य प्रदेश स्थित महू जो कि बाबा साहिब डा. अंबेडकर की जन्मभूमि है। दूसरा स्थान है लंदन का वह आवास जहां उच्च शिक्षा प्राप्ति के दौरान बाबा साहिब किराये पर रहे। इस स्थान को भारत सरकार के सहयोग से महाराष्ट्र की पूर्ववर्ती देवेन्द्र फडऩवीस सरकार ने निलामी में सर्वाधिक बोली लगाकर न सिर्फ खरीदा बल्कि बाबा साहिब से संबंधित संग्रहालय के तौर पर विकसित भी किया। तीसरा नागपुर का वह स्थान है जहां बाबा साहिब डा. अंबेडकर ने बौद्ध धर्म की दीक्षा ग्रहण की ओर चौथा स्थान है दिल्ली में 26 अलीपुर मार्ग स्थित बाबा साहिब का स्मारक च्महापरिनिर्वाण स्थलज् जो कि 7400 वर्ग मीटर में फैला हुआ है और 100 करोड़ रुपए की लागत से बनाया गया है। पंचतीर्थ की कड़ी में बाबा साहिब से जुड़ा पांचवा स्थान मुंबई महाराष्ट्र में चैत्य भूमि है जहां पर बाबा साहिब का बौद्ध परंपरा के अनुसार अंतिम संस्कार किया गया। मुंबई के बीचो-बीच इंदू मिल्स कंपाउंड में बाबा साहिब अंबेडकर का भव्य स्मारक माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं भारत सरकार के सौजन्य से लगभग 400 करोड़ रुपए की लागत से बनाया जा रहा है। मुझे भारत में स्थित उपरोक्त चारों तीर्थ स्थलों पर जाने का सौभाग्य अवश्य प्राप्त हुआ है। यदि सुधि पाठकगण भी इन स्थलों के दर्शन करेंगे तो निश्चित ही खुद को धन्य अनुभव करेंगे। इसके अलावा श्री नरेन्द्र मोदी के मुख्यमंत्री काल में वड़ोदरा (गुजरात) में भी बाबा साहिब डा. अंबेडकर का संकल्प भूमि स्मारक बनाया जा चुका है। यह स्मारक जूना कल्याण नगर में है जो कि एक हजार वर्ग मीटर के भूखंड में फैला हुआ है। डा. अम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को ब्रिटिश भारत के मध्य भारत प्रांत (अब मध्य प्रदेश) में स्थित महू नगर सैन्य छावनी में हुआ था। वे रामजी मालोजी सकपाल और भीमाबाई की 14 वीं व अंतिम संतान थे। उनका परिवार कबीर पंथ को माननेवाला मराठी मूूल का था और वे वर्तमान महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में आंबडवे गाँव के निवासी थे। उनके पिता ने महू छावनी में ब्रिटिश भारतीय सेना में सेवा की। अपनी जाति के अधिकांश बच्चों के विपरीत, युवा भीम ने स्कूल में पढ़ाई की थी। हालांकि, उन्हें और उनके दलित मित्रों को कक्षा के अंदर बैठने की अनुमति नहीं थी। शिक्षक उनकी नोटबुक को नहीं छूते थे। स्कूल के चपरासी जो स्वर्ण जाति के थे, वे उन्हें स्कूल में पानी पिलाते समय ऊंचाई से पानी डालते। चपरासी के अनुपलब्ध होने के दिन युवा भीम और उनके दोस्तों को पानी के बिना दिन गुजारना पड़ता था। सीखने और पढ़ाई में गहरी रुचि होने के कारण, भीम बॉम्बे के प्रतिष्ठित एल्फिंस्टन हाई स्कूल में दाखिला लेने वाले पहले दलित बन गए थे। बाद में उन्होंने तीन साल के लिए बड़ौदा राज्य छात्रवृत्ति जीती और न्यूयॉर्क में कोलंबिया विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की शिक्षा पूरी की। उन्होंने जून 1915 में एम.ए. की परीक्षा पास की और अपना शोध जारी रखा। भारतीय समाज, अर्थशास्त्र और इतिहास के साथ काम करने वाले तीन महत्वपूर्ण शोधों को पूरा करने के बाद, डॉ. अम्बेडकर ने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में दाखिला लिया जहां उन्होंने डॉक्टरेट थीसिस पर काम करना शुरू किया। वह अगले चार साल तक लंदन में रहें और दो डॉक्टरेट की पढ़ाई पूरी की। उन्हें पचास के दशक में दो और मानद डॉक्टरेट उपाधि से सम्मानित किया गया था। 1924 में भारत लौटने के बाद, डॉ. अम्बेडकर ने अस्पृश्यता के खिलाफ एक सक्रिय आंदोलन शुरू करने का फैसला किया। 1924 में उन्होंने भारत में जाति व्यवस्था को उखाडऩे के उद्देश्य से बहिश्रक हितकारिणी सभा की स्थापना की। संगठन ने सभी आयु समूहों के लिए मुफ्त विद्यालय और पुस्तकालय चलाए। डॉ. अंबेडकर दलितों की शिकायतों को अदालत में ले गए और उन्हें न्याय दिलाया। डा. अंबेडकर ने अपना सारा जीवन वंचित वर्ग के उत्थान के लिए संघर्ष किया। भारत के संविधान की रचना में उनकी प्रमुख भूमिका सर्वविदित है लेकिन दुर्भाग्य यह रहा कि बाबा साहिब अंबेडकर की छवि को चिरकाल तक दलगत राजनीति और वोट बैंक विकसित करने के लिए ही प्रयोग किया जाता रहा। बाबा साहिब इस देश की धरोहर हैं मगर 2014 से पूर्व आधी शताब्दी से भी अधिक समय तक एक छत्र राज करने वाली कांग्रेस पार्टी ने उनकी पहचान एक जाति विशेष और वर्ग विशेष के नेता के रूप में सीमित करने का पाप किया है। इससे बड़ी विडंबना और क्या होगी कि अपने जीवन काल में खुद को ही भारत रत्न की उपाधि देने वाले सत्ताधीशों ने बाबा साहिब को देश के सर्वोच्च सम्मान के योग्य तक नहीं माना। अंतत: वर्ष 1990 में भाजपा के साथ गठबंधन वाली विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार की जनता दल सरकार के समय बाबा साहिब को भारत रत्न से नवाजा गया। इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के समय बाबा साहिब डा. अंबेडकर की विरासत को सहेजने का काम शुरु हुआ जिसे अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तीव्र गति से आगे बढ़ा रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने 26 नवंबर को संविधान दिवस घोषित किया। बाबा साहिब की समृति में 10 व 125 रुपए के सिक्के जारी किए। वंचितों को समाज में समानता का दर्जा मिले यही बाबा साहिब डा. अंबेडकर का मुख्य स्वप्र था जिसे साकार रूप देने का प्रयास मोदी सरकार द्वारा लगातार किया जा रहा है। जिसके अन्तर्गत गत वित्त वर्ष 2021-22 के केन्द्रीय बजट में 1.26 लाख करोड़ रुपए का प्रावधान अनुसूचित जाति वर्ग के कल्याण हेतु किया गया। अनुसूचित जाति के विद्यार्थियों के लिए मैट्रिकोत्तर छात्रवृति, नेशनल ओवरसीज स्कॉलरशिप, अनुसूचित जाति वर्ग के छात्र-छात्राओं के लिए नि:शुल्क कोचिंग, उद्यम पूंजी कोष, स्टैंडअप इंडिया योजना, प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना में महत्वपूर्ण प्रावधान किये गए। इसके अलावा एस.सी वर्ग को बेहतर सुरक्षा ओर न्याय सुनिश्चित करने के मनोरथ से अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 में संशोधन कर और सशक्त बनाया गया। यहां तक कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में स्वदेशी रूप से विकसित भुगतान ऐप का नामकरण च्भीमज् ऐप भी श्रद्धेय बाबा साहिब डॉ. अंबेडकर के नाम पर किया गया। 7 दिसंबर 2017 को डा. अम्बेडकर अन्तर्राष्ट्रीय केन्द्र का उद्घाटन माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा किया गया था। कोरोना आपदाकाल में 80 करोड़ नागरिकों को खाद्यान्न की आपूर्ति के लाभ का एक बड़ा भाग वंचित वर्ग को मिल रहा है। संक्षेप में सभी पाठकों को बाबा साहिब डा. अंबेडकर जी की 131वीं जयंती की शुभकामनाओं के साथ इस लेख को यहीं विराम देते हुए इतना अवश्य कहना चाहुंगा कि विपक्ष बेशक मोदी सरकार की छवि को दलित विरोधी बनाने के लिए जितना भी जोर लगा ले लेकिन देश का वंचित वर्ग आज इस वास्तविकता से भलीभांति परिचित हो चुका है कि बाबा साहिब डा. अंबेडकर के मिशन को पूरी निष्ठा एवं ईमानदारी के साथ आगे बढ़ाने तथा भारतीय समाज के वंचित वर्ग को समानता का संविधानिक अधिकार दिलाने वाली उस पुण्य आत्मा को यदि किसी सरकार ने बनता सम्मान देने का काम किया है तो वह भारत की वर्तमान नरेन्द्र मोदी सरकार ही है।