Punjab

जनता के अरबों रुपए उड़ाए, लेकिन विधानसभा में 365 दिनों में सिर्फ 11 दिन आए

                                                                                              संजीव पांडेय

जनता की मेहनत की कमाई के अरबों रुपए उड़ाने वाले पंजाब के विधायक अपनी जनता के लिए कितना समय निकालते हैयह जानाकर आप हैरान हो जाएंगे। 2021 में पंजाब के विधायक जनता के मुद्दों पर चर्चा के लिए पंजाब विधानसभा में मात्र 11 दिन बैठे। पंजाब की सेवा की रट लगाने वाले चुने हुए विधायक पिछले दो सालों में पंजाब विधानसभा जनता के मुद्दों के लिए मात्र 10 से 15 दिन ही निकाल पाए। हालांकि देश के दूसरे राज्यों का हाल बहुत अच्छा नहीं है। लेकिन पंजाब से थोड़ा बेहतर प्रदर्शन दूसरे राज्यों का है। हालांकि जनता की सेवा करने वाले विधायक चुने जाने के बाद चंडीगढ़ में आलीशान सरकारी बंगले में रहते है। बड़ी-बड़ी फॉर्चुनर गाड़ियों पर चलते है। गनमैन के काफिले साथ में होते है।

2021 में पंजाब विधानसभा की मात्र 11 सिटिंग हुई है। यानि की पंजाब विधानसभा की बैठक साल के 365 दिनों में मात्र 11 दिन हुई है। इन 11 दिनों में 8 दिन बजट सत्र के थे। यही कुछ हाल 2020 में रहा जब पंजाब विधानसभा की पूरे साल में मात्र 15 सिटिंग (दिन) हुई। जनता और राज्य के मुद्दों पर बहस से पीछे हटने के लिए कोविड एक बढिया बहाना रहा। पर इसमें कोई शक नहीं है कि भाजपा शासित राज्यों की तरह ही कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार पंजाब विधानसभा के सेशन को लेकर गंभीर नहीं थी। पंजाब के पडोसी राज्य हिमाचल प्रदेश और राजस्थान का प्रदर्शन बेहतर था जहां पंजाब से ज्यादा दिन राज्य विधानसभा की बैठक हुई। जबकि भाजपा शासित पड़ोसी हरियाणा की स्थिति पंजाब की तरह ही थी।

हिमाचल प्रदेश और हरियाणा में भाजपा की सरकार है। जहां हिमाचल प्रदेश ने राज्य विधानसभा की बैठकों के मामले में  बाकी राज्यों को काफी पीछे छोड़ दिया, वहीं हरियाणा विधानसभा की बैठकों के मामले में पंजाब के बराबर प्रदर्शन करता नजर आया। हिमाचल प्रदेश विधानसभा की बैठक 2021 में 32 दिन हुई, जबकि 2020 में 25 दिन की बैठक हुई। 2021 में हरियाणा विधानसभा की बैठक 18 दिन हुई जबकि 2020 में 13 दिन बैठक चली। एक और भाजपा शासित राज्य उतर प्रदेश में भी विधानसभा जैसे लोकतांत्रिक संस्थाओं के प्रति सरकार की उदासीनता नजर आयी। यूपी में 2021 में विधानसभा की बैठक मात्र 17 दिन चली, जबकि 2020 में बैठक 13 दिन चली। आबादी के हिसाब से देश का सबसे बड़े राज्य उतर प्रदेश भी लोकतांत्रिक संस्थाओं को बाइपास करने में काफी आगे रहा।

हालांकि विधानसभा सेशन की सिटिंग के मामले में पंजाब से हल्का बेहतर प्रदर्शन उतर प्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल और गुजरात के विधानसभाओं का रहा। 2021 में महाराष्ट्र विधानसभा की बैठक 15 दिन औऱ 2020 में 18  दिन चली। निश्चित तौर पर महाराष्ट्र में भी कोविड बढिया बहाना था। पंजाब के एक और पडोसी राज्य राजस्थान का प्रदर्शन पंजाब से बेहतर था। 2021 में राजस्थान विधानसभा की बैठक 26 दिन और 2020 में 29 दिन हुई। पश्चिम बंगाल विधानसभा की 2021 में 19 दिनों की बैठक हुई। जबकि 2020 में 14 दिनों की बैठक हुई। सबसे बेहतर प्रदर्शन उड़ीसा विधानसभा का रहा जहां 2021 में कुल 365 दिनों में 43 दिन बैठक हुई।

हालांकि संसदीय परंपरा को बाईपास करने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार बदनाम है। नरेंद्र मोदी सरकार पर संसद की अवहेलना का आरोप लगातार लग रहे है। लेकिन नरेंद्र मोदी के गृह राज्य गुजरात की विधानसभा बैठकों के मामले में पंजाब विधानसभा से बेहतर प्रदर्शन करता नजर आया है। गुजरात विधानसभा की 2021 में कुल 25 दिन बैठक हुई। जबकि 2020 में 23 दिन हुई। दरअसल लोकतांत्रिक संस्थाओं को बाइपास करने में अब सारे दल बराबर हो गए है। अगर कांग्रेस शासित राज्य पंजाब में विधानसभा की बैठकों को लेकर सरकार गंभीर नहीं है तो भाजपा शासित यूपी और हरियाणा का हाल भी बुरा है। क्षेत्रीए दल तृणमूल कांग्रेस शासित राज्य पश्चिम बंगाल का हाल भी बहुत अच्छा नहीं है जहां सरकार विधानसभा की बैठकों को लेकर बहुत गंभीर नहीं है।

आज विधायक लाखों रुपए वेतन ले रहे है। इसके अलावा विधायको को कई और सुविधाएं मिलती है। पंजाब जैसे राज्य में विधायक सरकारी सुविधाओं पर खूब मजे करते है। वैसे तमाम राज्यों में विधायकों को कई और मुफ्त की सुविधाएं सरकार से मिलती है। विधायकों के वेतन, भत्ते और मिली अन्य सुविधाओं खर्च जनता वहन करती है। जनता के टैक्स से भरे गए सरकारी खजानों से इन्हें सारी सुविधाएं दी जाती है। लेकिन जनता के मुद्दों पर इन विधायकों के पास बहस के लिए समय नहीं है। हालांकि आजादी के बाद राज्य विधानसभाओं की साल में औसतन बैठक 50 से 60 दिन तक चलती थी।  

हालांकि पार्लियामेंट और स्टेट असेंबली की बैठकें साल भर में कितने दिन होगी, इस पर भारतीय संविधान चुप है। संविधान के आर्टिकल 85 और 174 संसद और राज्य विधानसभा की बैठकों को आहुत किए जाने को लेकर सिर्फ इतना कहती है कि एक सत्र से दूसरे सत्र के बीच छ महीनें से ज्यादा का अंतराल न हो। मतलब एक सेशन समाप्त होने के छ महीनें के अंदर अगला सत्र बुलाना जरूरी है। लेकिन सेशन कितने दिनों तक चलेगा, इसका संविधान में कोई उल्लेख नहीं है। हालांकि संसदीय संस्थाओं के सत्र कितने दिन तक चलाया जाना चाहिए इस पर संविधान सभा में डिबेट हुआ था। संविधान सभा के कुछ सदस्यों का कहना था कि पार्लियामेंट का सेशन पूरे साल चलना चाहिए। संविधान बनने के बाद भी कई कमेटियों ने यह कहा था संसद का सत्र साल भर में कम से कम 120 दिन चलना चाहिए।

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