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क्या वाकई में इमरान की कुर्सी की बलि अमेरिका लेना चाहता है ?
संजीव पांडेय
पाकिस्ताऩ के प्रधानमंत्री इमरान खान अपनी कुर्सी बचाने के लिए पूरी ताकत से लड़ाई लड़ रहे है। अभी तक उन्होंने सरेंडर नहीं किया है। अब उन्होंने लेटर बम फोडा है। लेटर बम के हवाले से इमरान खान ने कहा है कि उनकी सरकार अमेरिका के इशारे पर गिरायी जा रही है। उन्होंने देशवासियों को संबोधित करते हुए सरकार गिराने में अमेरिकी खेल की चर्चा कर दी। हालांकि उन्होंने अगले पल ही अमेरिका नाम वापस ले लिया है औऱ कहा कि एक विदेशी मुल्क उनकी सरकार गिराना चाहता है। इमरान खान का लेटर बम सरकार बचाने का अंतिम हथियार है। हालांकि इमरान सरकार बचती नजर नहीं आ रही है। लेकिन इमरान के लेटर बम ने साफ संकेत दिए है कि दक्षिण एशिया की पॉलिटिक्स में अमेरिकी हस्तक्षेप बहुत ही मजबूत है। अगर इमरान सरकार चली जाती है तो उनके दवारा चीन और रूस से मिलकर त्रिकोण बनाने को लेकर तमाम सवाल उठेंगे।
दरअसल यूक्रेन वार के दौरान ही इमरान की रूस यात्रा ने उनका संकट बढाया। उनकी रूस यात्रा के बाद नो कांफिडेंस मोशन संयुक्त विपक्ष ने उनके खिलाफ लाया। वैसे विपक्ष पिछले एक साल से ज्वाइंट फ्रंट बनाकर इमरान खान सरकार के खिलाफ लड़ रहा था। लेकिन नो कॉंपिडेंस मोशन लाने की हिम्मत विपक्ष नहीं कर पा रहा था। लेकिन इमरान खान की रूस यात्रा के बाद एकाएक विपक्ष को नो कॉंफिडेंस मोशन मिलने की ताकत कहां से मिल गई, इस पर सवाल उठना लाजिमी है। फिर इस लड़ाई में ज्वाइंड अपोजिशन हर तरह की सैक्रिफाइस के लिए तैयार है। यही अचंभे वाली बात है।
इमरान खान ने सरकार गिराने में अमेरिकी भूमिका का साफ जिक्र किया है। लेकिन अमेरिकी प्रशासन इसका खंडन कर रहा है। हालांकि अमेरिकी जियो-पॉलिटिकल भोलेपन को तमाम दुनिया जानती है। अमेरिकी की दी गई सफाई को तुरंत स्वीकार नहीं किया जा सकता है। दुनिया के तमाम देशों में अमेरिकी हस्तक्षेप रहा है। अमेरिका अपने हिसाब से लैटिन अमेरिका से लेकर एशियाई मुल्कों में तख्ता पलट करवाता रहा है, यह एक सच्चाई है। हां यह अलग बात है कि ईरान और सीरिया जैसे देश में अमेरिका को तख्ता पलट में सफलता नहीं मिली। सीरिया में बशर अल असद सरकार को बचाने में रुस कामयाब रहा। लेकिन इमरान खान को बचाने में रूस कितना कामयाब होगा यह समय बताएगा?
1980 के दशक में पनामा के राष्ट्रपति ओमर टौरिजस प्लैन क्रैश में मारे गए थे। वे पनामा में अमेरिकी हस्तक्षेप के खिलाफ बोल रहे थे। इसी तरह से 1980 के दशक में ही इक्वाडोर के राष्ट्रपति जैमे रॉल्डोस भी एक प्लैन क्रैश में मारे गए थे। रॉल्डोस की आर्थिक नीति अमेरिकी एनर्जी कारपोरेशनों को रास नहीं आ रही थी जिनके भारी आर्थिक हित इक्वाडोर के गैस रिजर्व से जुड़े थे। दोनों देशों के ये दोनों महत्वपूर्ण शासकों की मौत प्लैन क्रैश में हुई और शक की सुई सीधे अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए पर गई। अमेरिका के खास रहे पाकिस्तानी तनाशाह की मौत भी टौरिजस और रॉल्डोस की तरह एक प्लेन क्रैश में हो गई। उनकी हत्या के पीछे सीआईए की भूमिका बतायी गई। जनरल जिया के परिवार ने जिया की मौत को हत्या माना और इसके लिए अमेरिका को जिम्मेदार माना। वैसे इमरान खान ने सारी हकीकत जानते हुए भी अमेरिका पर गंभीर आरोप लगाकर अपनी हिम्मत दिखायी है कि उनकी सरकार को अमेरिका गिराना चाहता है।
दरअसल पाकिस्तानी समाज, राजनीति और सेना में अमेरिकी प्रशासन का किस कदर हस्तक्षेप है, यह इमरान खान भलिभांति जानते है। 2018 में इमरान खान की सरकार पाकिस्तान में बनी थी। इमरान खान को सत्ता में लाने को लेकर पाकिस्तानी सेना को अमेरिका सहमति थी। क्योंकि नवाज शऱीफ लगातार चीन की तरफ ज्यादा झुकाव रखे हए थे। 2013 में सत्ता पर काबिज होने के बाद नवाज चीन के नजदीक हो गए थे। उन्होंने चीन के मह्त्वकांक्षी प्रोजेक्ट बेल्ट एंड रोड पहल को मंजूरी दी थी। अब इमरान खान ने रूस जाकर अमेरिका को आंख दिखायी। इससे पहले बीजिंग में पुतिन, शी जिनपिंग और इमरान की गलबहियां अमेरिका को रास नहीं आयी थी। बस देखते-देखते पाकिसतान के अंदर सक्रिय अमेरिकी ताकतें कमाल दिखाने लगी।
एक अहम सवाल है कि आखिर अमेरिका ने पाकिस्तानी आर्मी के जनरलों और राजनीतिक दलों के नेताओं की कौन सी नब्ज पकड़ रखी है, जिस कारण जनरल से लेकर नेता तक अमेरिकी इशारों पर नाचते है। दरअसल पाकिसतानी सेना के जनरलों और राजनीतिक दलों नेताओ ने अपने दो नंबर के पैसे यूरोप और अमेरिका में सुरक्षित रखे हुए है। उनके कारोबार और बिजनेस यूरोप और अमेरिका में है। पश्चिमी ताकतों ने जिस तरह से पुतिन के नजदीकी रूसी कारोबारियों के बिजनेस और बैंक खातों पर हमला बोला है, उससे पाकिस्तानी जनरल और नेता डरे हुए है। वे अमेरिकी इशारों को बेहतर समझते है।