
25 जून 1975 — यह वो दिन है जिसे आज भी पूरा भारत याद करता है। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस दिन देश में आपातकाल लगाने का फैसला लिया था।
1975 का आपातकाल: क्या यह ज़रूरी था या लोकतंत्र पर हमला?
नरेश शर्मा
आज भी पूरा भारत एक खास दिन को याद करता है। इतिहास इस दिन को कभी नहीं भूलेगा। भारत के इतिहास में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एक ऐसा फैसला लिया था जिसे आपातकाल के नाम से जाना जाता है। आज भी देश इस फैसले को याद करता है। 25 जून 1975 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारत के लिए आंतरिक और बाहरी दोनों तरह के खतरों का हवाला देते हुए आपातकाल की घोषणा की थी। सरकार ने पहले भी दो बार आपातकाल की घोषणा की थी- एक 1962 के चीन युद्ध के दौरान और दूसरी 1971 के पाकिस्तान युद्ध के दौरान। 1962 के चीन युद्ध और 1971 के पाकिस्तान युद्ध के दौरान भारत ने पहली बार आपातकाल की घोषणा की थी। इंदिरा गांधी ने 1975 में तीसरी बार आपातकाल की घोषणा की।
न्यायालय के फैसले के बाद इंदिरा गांधी ने 1975 में आपातकाल क्यों लगाया
लेकिन 1975 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इंदिरा गांधी को बड़ा झटका दिया। घोषणापत्र में गलत जानकारी देने के कारण इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उनका चुनाव रद्द कर दिया। यहीं से देश में आपातकाल की कहानी शुरू होती है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उन पर 6 साल के लिए चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया, जिसे इंदिरा गांधी बर्दाश्त नहीं कर सकीं। उनकी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर खतरा बढ़ने लगा।
इंदिरा गांधी ने देखा कि कोर्ट के फैसले के बाद उनकी कुर्सी खतरे में है। उन्होंने तर्क दिया कि देश को आंतरिक और बाहरी दोनों तरह का खतरा है। नतीजतन, उन्होंने 25 जून 1975 को देश में आपातकाल लगा दिया। सरकार ने इस दौरान प्रेस पर प्रतिबंध लगा दिए। इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाने का फैसला लिया। इंदिरा गांधी ने अनुच्छेद 352 के तहत लगाया और तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने इंदिरा गांधी की सलाह पर इसकी घोषणा की। बाद में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भी इसे मंजूरी दे दी। यह 21 महीने तक चला। यह भारत के इतिहास का सबसे काला दौर था।
आपातकाल : भारत ने 1977 में अपना फैसला सुनाया
उस समय इंदिरा गांधी ने कहा था कि मुझे देश के हित में कई कड़े फैसले लेने हैं। इंदिरा गांधी ने कहा कि अगर मैं फैसला नहीं लूंगी तो देश टूट सकता है।
लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने इसके खिलाफ आंदोलन शुरू किया। जिससे पूरे देश में आपातकाल के खिलाफ आंदोलन शुरू हो गया। इंदिरा गांधी को हटाने के नारे लगने लगे। जन आंदोलन तेज हो गया। जयप्रकाश नारायण के प्रभाव में आपातकाल के खिलाफ जन आंदोलन शुरू हो गया। इस आंदोलन से कई राष्ट्रीय स्तर के नेता भी निकले। बड़े-बड़े नेता जेल गए। अब सवाल यह है कि आपातकाल सही था या गलत, देश की जनता ने 1977 में ही यह तय कर लिया था। उस समय हुए चुनावों में कांग्रेस बुरी तरह हारी थी। देश की जनता ने अपने वोट के जरिए इंदिरा गांधी को बता दिया था कि आपातकाल लगाने का उनका फैसला पूरी तरह गलत था। इंदिरा गांधी द्वारा दिए गए तर्क को भी लोगों ने गलत करार दिया। एक लोकतांत्रिक देश थोड़ी सी भी तानाशाही बर्दाश्त नहीं करता।
: क्या जनता ने इस आपातकाल का समर्थन किया?
1977 के आम चुनावों में जनता ने अपना जवाब दे दिया।
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कांग्रेस की करारी हार हुई
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इंदिरा गांधी खुद चुनाव हार गईं
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लोगों ने साफ संदेश दिया कि लोकतंत्र में तानाशाही स्वीकार नहीं है
क्या सही था या ग़लत?
सरकार ने इसे “राष्ट्रहित” में बताया, लेकिन जनता ने इसे लोकतंत्र पर हमला माना।
एक लोकतांत्रिक देश थोड़ी सी भी तानाशाही बर्दाश्त नहीं करता।
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