परिवारवाद : पंजाबियों का देश की आजादी में बड़ा योगदान रहा है । देश की सियासत में भी पंजाबियों का हमेशा ही दबदबा रहा है पंजाब एक ऐसा राज्य है जहां से नई तब्दीली की लहर हमेशा उठाती रही है । पंजाबियों का डीएनए ही ऐसा है कि वह हमेशा कुछ नया करने के लिए तत्पर रहते हैं। कृषि कानून के खिलाफ पंजाबियों के संघर्ष को कौन नहीं जानता जिसके आगे देश की सरकार को भी झुकना पड़ा।
अब पंजाब में एक नई तब्दीली की लहर उठने लगी है इस का असर आने वाले समय में देश में भी देखने को मिलेगा । पंजाब भारत का पहला राज्य है जहां पर राजनीतिक परिवारवाद का भोग पड़ना शुरू हो गया है। पंजाब के लोगों ने परिवारवाद को रद्द करना शुरू कर दिया है । पंजाब में हमेशा ही राजनीति में परिवारवाद का बोल बाला रहा है । चाहे वह पंजाब की क्षेत्रीय पार्टी अकाली दल हो, या कांग्रेस। इनमें परिवार बाद हमेशा ही पनपता रहा है लेकिन अब पंजाब की जनता इस परिवार बाद से इस कदर दुखी हो गई है उसने इनको सबक सिखाना शुरू कर दिया है।
पंजाबी हमेशा करते हैं नए-नए अनुभव
पंजाबी हमेशा नए-नए अनुभव करते रहते हैं । इसका सबसे बड़ा कारण यह है की पंजाबी यह सोचते हैं कि आने वाले समय में पंजाब का भविष्य बदलेगा । उनके बच्चों का उनके परिवार का भविष्य सही होगा । इस उम्मीद से वह नए-नए अनुभव करते रहते हैं । पंजाब एक कृषि प्रधान राज्य है । पंजाब का देश की हरित क्रांति में बहुत बड़ा योगदान रहा है लेकिन ग्लोबलाइजेशन के दौर में छोटी किसानी भी प्रभावित हुई है । खुले व्यापार ने छोटी किसानी के महत्व को कम कर दिया है।
बड़े उद्योगपति कृषि पर अपना कब्जा करना चाहते हैं लेकिन पंजाब ही एकमात्र राज्य है यहाँ इसके खिलाफ किसान लड़ाई लड़ रहे हैं ।
परिवारवाद : अब पंजाब में एक दूसरी लड़ाई भी शुरू
अब पंजाब में एक दूसरी लड़ाई भी शुरू हो गई है । नेता अक्सर चुनाव के दौरान अपने परिवार के सदस्यों को टिकट दिलाने के लिए नए-नए हथकंडे अपनाते हैं। वे जनता को यह एहसास दिलाते हैं कि पार्टी ने उनके परिवार को टिकट दिया है। पार्टी जीतने वाले उम्मीदवार को ही टिकट देती है, इसलिए जनता यह समझती है। पार्टी उनके परिवार के सदस्यों को टिकट देती है। लेकिन अब पंजाब की जनता यह बात अच्छी तरह समझ चुकी है। इसी वजह से नेता अपने परिवार को आगे बढ़ाने के लिए कोई भी नया हथकंडा अपना सकते हैं। यही वजह है कि दिन-रात मेहनत करने वाले कार्यकर्ताओं को टिकट नहीं मिल पाता। इस बीच नेता अपने परिवार के सदस्यों को टिकट दिलाने में सफल हो जाते है ।
पंजाब पंजाब की सियासत में परिवारवाद का बोलबाला रहा है । अगर परिवार में कोई व्यक्ति विधायक है तो वह चाहता है कि उसका बेटा जा उसकी पत्नी मेंबर पार्लियामेंट बन जाए । अगर कोई एम पी है तो वह चाहता है कि उसका परिवार का मेंबर विधायक बन जाए । अगर कोई विधायक है तो वह चाहता है कि उसकी पत्नी जब उसका बेटा काउंसलर बन जाए ।
पंजाब के लोगों ने ऐसे सियासतदानों को नकारना करना शुरू कर दिया
इस तरह की सियासत पंजाब में काफी समय से चली आ रही है लेकिन अब पंजाब के लोगों ने ऐसे सियासतदानों को नकारना करना शुरू कर दिया है ।लेकिन अब पंजाब की जनता ने ऐसे नेताओं को नकारना शुरू कर दिया है।पंजाब प्रदेश कांग्रेस के प्रधान अमरिंदर सिंह राजा वारिंग के लोक सभा चुनाव जीतने के बाद गिदड़वाहा विधान सभा सीट खाली हुई थी उप चुनाव में राजा वारिंग ने अपनी पत्नी अमृता वारिंग को चुनाव मैदान में उतार दिया लेकिन वह इस सीट पर चुनाव हार गयी इस तरह पंजाब ने पूर्व उप मुख़्यमंत्री सुखजिंदर सिंह के लोक सभा में जाने के चलते डेरा बाबा नानक विधान सभा सीट खाली थी ।वहां से उन्हों ने अपनी पत्नी जतिंदर कौर रंधावा को चुनाव मैदान में उतरा वह भी चुनाव हार गई ।
अक्सर देखा जाता है जब कोई चुनाव आता है तो सियासतदान अपने परिवार को टिकट दिलाने के लिए नए-नए पैतरे अपनाते हैं । वह जनता को अहसास करवाते हैं की पार्टी ने उनके परिवार का सदस्य को इसलिए टिकट दिया है क्योंकि पार्टी का फार्मूला है के जीतने वाले उम्मीदवार को ही टिकट दी जाएगी।
इसीलिए उनके परिवार के सदस्यों को पार्टी टिकट देकर सम्मानित किया जाता है, लेकिन अब पंजाब के लोग भलीभांति समझ चुके हैं । इससे सियासतदान अपने परिवार को आगे लाने के लिए कुछ भी नया पैंतरा खेल सकते हैं। इसलिए जो वर्कर दिन रात मेहनत करते हैं उनका टिकट नहीं मिलती और सियासतदान अपने पारिवारिक सदस्य को टिकट दिलाने में कामयाब हो जाता है।
उप चुनाव में लोगों ने परिवारवाद को नकार कर रख दिया
पंजाब में पिछले समय में उपचुनाव हुए और उप चुनाव में लोगों ने परिवारवाद को नकार कर रख दिया है । कई सियासत दोनों ने अपनी पत्नियों को चुनाव मैदान में उतारा लेकिन लोगों ने उनको नकार कर रख दिया । कारण साफ है की लोकसभा के चुनाव होते हैं तो विधायक अपना त्यागपत्र देकर लोकसभा में अपनी किस्मत आजमाते हैं और जनता उनको जिताकर लोकसभा में भेज देती है लेकिन जैसे ही खाली हुई सीटों पर चुनाव होता है तो वह सियासतदान अपनी पत्नियों को चुनाव मैदान में उतार देते हैं ।
लेकिन पंजाब की जनता अब समझ चुकी है कि अब अगर उनकी पत्नियों को जीता दिया तो जिनको अब लोकसभा में भेजा है वह भी 2027 के विधानसभा चुनाव ही में फिर विधायक पद का चुनाव लड़ने के लिए आगे आएंगे और
अगर विधायक बन जाएंगे तो वह फिर अपने पारिवारिक सदस्यों को लोकसभा में भेजने के लिए चुनाव लड़ेंगे और ऐसे ही एह सिलसिला चलता रहेगा । इसलिए पंजाब के लोगों ने ऐसे सियासत दोनों के संदेश दे दिया है के अब परिवारवाद नहीं चलेगा।
लोकल बॉडीज के चुनाव में भी सियासतदानों को संदेश
पंजाब के लोगों ने अब लोकल बॉडीज के चुनाव में भी सियासतदानों को संदेश दे दिया है । लोकल बॉडी चुनाव में एक पूर्व मंत्री ने अपनी पत्नी को चुनाव मैदान में उतरा वही 2 मौजूदा विधायकों ने भी अपनी पत्नियों को चुनाव मैदान में उतारा, वही एक पूर्व विधायक ने अपने भाई को चुनाव मैदान में उतरा लेकिन लोगों ने सब को नकार दिया। कोई भी नेता अपने परिवार के सदस्य को नहीं जीत पाया ।
पंजाब की जनता ने अब स्थानीय निकाय चुनावों में नेताओं को संदेश दे दिया है। इन चुनावों में कांग्रेस के पूर्व मंत्री भारत भूषण आशु की रणनीति थी। उन्होंने लुधियाना नगर निगम चुनाव में अपनी पत्नी ममता आशु को मैदान में उतारा। हालांकि, वह चुनाव हार गईं। इसी तरह आम आदमी पार्टी के विधायक अशोक पराशर ने अपनी पत्नी मीनू पराशर को मैदान में उतारा। वहीं, विधायक गुरप्रीत सिंह गोगी ने अपनी पत्नी डॉ. सुखचैन कौर कौर को मैदान में उतारा। वे दोनों चुनाव हार गए। इसके अलावा जालंधर से पूर्व विधायक सीतल अंगुराल ने भी अपने भाई को चुनाव में उतारा। जनता ने उन्हें नकार दिया। कोई भी नेता अपने परिवार के सदस्य को चुनाव जिताने में सफल नहीं हो पाया।
कारण साफ है कि लोग अब परिवारवाद के खिलाफ खड़े हो गए हैं और इसका आगाज अब पंजाब से हो गया है ? पंजाबियों ने अब साफ कर दिया है की सियासत में अब परिवारवाद नहीं चलेगा। यह उनका आने वाले चुनाव में भी सियासत दानों को एक संदेश है।
विधायकों ने अपनी पत्नीयो को चुनाव मैदान में उतारा
पंजाब में अकाली दल में देखा गया के ज्यादातर नेताओं ने अपने परिवार से जुड़े लोगों को चुनाव मैदान में उतारा। इस तरह ही कांग्रेस ने किया है। अब आम आदमी पार्टी के 2 विधायकों ने अपनी पत्नीयो को चुनाव मैदान में उतारा लेकिन लोगो ने परिवारवाद को रद्द कर दिया ।
पंजाब में सियासत में परिवारवाद पूरी तरह अपना जड़े जमाए हुए था।लेकिन अब लोगो ने इन जड़ो को खोखला करना शुरू कर दिया है अब इन जड़ो को खोखला करने का बेडा भी पंजाबियों ने उठाया है और साथ ही पूरे देश को एक संदेश भेज दिया है कि अब समय आ गया है के आप नए वर्ष में इस का आगाज करे।परिवारवाद के जड़ से बाहर निकलकर फेंके ।