समाज सेवा एक तरह से नैतिक दायित्व भी होता है-कैप्टन पराशर
-कोरोना की दूसरी लहर मेंं किए गए कार्य से हर कोई है प्रभावित
डाडासीबा-
समुद्र से लेकर पहाड़ तक आजकल कैप्टन संजय पराशर का इसलिए जिक्र हो रहा है क्योंकि उन्होंने समाजसेवा की एक नई परिभाषा गढ़ दी है। दुनिया के किसी कोने में जब कोई भारतीय नाविक फंस जाता है, तो उसे कैप्टन पराशर याद आते हैं तो कोरोनाकाल में किए गए उनके समाजसेवा के कार्यों से हर कोई प्रभावित है। मुंबई स्थित एक शिपिंग (नौवहन) कंपनी के मालिक संजय पिछले वर्ष मार्च में कोरोनाकाल के दौरान कुछ समय के लिए यहां आए थे, लेकिन जब उन्होंने क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थितयों, बुजुर्गों काे बीमारियों के साथ समझौता करते हुए और समाज के निर्धन व असहाय वर्ग की आर्थिक हालत को देखा तो वह यहीं के होकर रह गए। क्षेत्र की शिक्षा व स्वास्थ्य व्यवस्था में व्यक्तिगत योगदान देकर उन्होंने सामाजिक सरोकारों का नया अध्याय लिखा है तो कोरोना की दूसरी लहर में भी वह संक्रमित मरीजों के साथ हर पल खड़े रहे। पराशर कहते हैं कि सनातन धर्म के संस्कार बताते हैं कि समाज सेवा एक तरह से नैतिक दायित्व भी होता है। अगर आपने इस दुनिया व समाज से कुछ हासिल किया है तो आपका भी फर्ज बनता है कि आप उस वर्ग, तबके या कमजोर व्यक्ति का साथ दें जो किन्हीं कारणों के चलते अक्षम है। समाज सेवा का कोई निश्चित मापदंड नहीं होता। प्रयास किया था कि सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में मेडीकल कैंप लगाकर उन बुजुर्गों की आंख, कान या हड्डियोंं से संबधित बीमािरियों का इलाज करवा सकूं। इसके लिए स्वाणा, रौड़ी-कौड़ी और रिड़ी-कुठेड़ा में ऐसे स्वास्थ्य शिविरों का आयोजन किया और तीन हजार लाभार्थियों की जांच अनुभवी चिकित्सकों की टीम ने की अौर उन्हें निशुल्क दवाईयों का वितरण किया गया। साथ में 250 मरीजों को कान की मशीन और 9्र00 को चश्मे भी बिना कोई खर्च किए वितरित किए गए। इन्हीं कैंपो में आए 117 मोतियाबिंद की बीमारी से जूझ रहे बुजुर्गों के आपरेश्न भी करवाए गए और इनके परिवारों पर आपरेशन का खर्च का एक नया पैसा बोझ नहीं पड़ने दिया। वहीं, कोरोनाकाल में भी प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग को दवाईयों व मेडीकल उपकरण उपलब्ध करवाकर कोरोना संक्रमित मरीजों की सेवा की।
समुद्री नाविकों की मदद को भी पराशर रहते हैं हर समय तैयार-
लगभग तीन लाख भारतीय नाविक हैं जो नाविक दुनिया के कुल नाविकों के करीब 10 प्रतिशत हैं। ये नाविक दुनियाभर में घूमते हजारों व्यापारी जहाजों को चलाते हैं और उनकी संख्या में हर साल 20 प्रतिशत की वृद्धि हो रही है। समुद्र में मानवाधिकारों का हनन शायद ही कभी लोगों की नजर में आता है। ऐसी स्थिति में पराशर बताते हैं कि उन्होंने नाविकों को वापस लाने के लिए विदेश में भारतीय मिशनों के साथ संपर्क स्थापित किया है अौर नाविकों को सुरक्षित घर वापस लेकर आए हैं। उन्हें निशुल्क हवाई टिकट दिलवाया है और यहां तक कि उन नाविकों के परिवारों को फंसे हुए नाविकों से मिलने के लिए भी भेजा है। पराशर ने अब तक कुल 95 मामलों में हस्तक्षेप करके 600 से अधिक फंसे हुए नाविकों को सुरक्षित निकाला है और उनके परिजनों से मिलाया है।