पंजाब भाजपा में लीडरशिप का संकट ,बावजूद इसके अगले चुनावों के लिए बना लिया मिशन-60 का लक्ष्य
भाजपा की स्टेट टीम से भी भाजपा के ज़्यादातर नेता खुश नहीं
बंगाल में मिशन-200 की निकल चुकी हवा, पंजाब में कैसे पूरा होगा मिशन-60
पंजाब भाजपा ने पंजाब के आगामी विधान सभा चुनावों में 60 सीटों पर जीत दर्ज करने के लिए मिशन-60 पर काम करना शुरू कर दिया है। जबकि हकीकत यह है कि अभी तक पंजाब भाजपा के पास ऐसा एक चेहरा तक नहीं जिसके नेत्तृत्व में वह आगामी चुनाव लड़ सके। इसके साथ ही भाजपा के पास पंजाब में ऐसे 60 नेता भी नहीं हैं जो इन सीटों के दावेदार बनाए जा सकें।
पंजाब भाजपा में किसी और नेता को कोई एहमियत नहीं दी जाती है । माना यह जा रहा है कि भाजपा प्रधान के साथ एक दो लोग जुड़े है जो पूरी पार्टी पर भरु पर रहे है। हालात ये है कि किसान संघर्ष के चलते पंजाब में यहाँ भाजपा का भारी विरोध हो रहा है । भाजपा के सूत्रों का कहना है कि भाजपा की स्टेट टीम से भी भाजपा के ज़्यादातर नेता खुश नहीं है । इस कारण साफ है कि भाजपा प्रधान अश्वनी शर्मा के साथ जुड़े कुछ लोग प्रधान पर इतने हावी हो गए है कि उनके बिना पार्टी में किसी की सुनवाई नहीं है ।
वही देखा जा रहा है भाजपा में जब किसी भी नेता की नियुक्ति होती है तो उनकी नियक्ति का प्रेस नोट जारी होता तो जिस की नियुक्ति हुई है उसकी जगह पर प्रधान के साथ जुड़े जीवन कुमार व् सुभाष शर्मा अपनी अखवारो में फोटो लगवाने को एहमीयत देते है । सिर्फ मीडिया में खुद ही छाया रहना चाहते है , जब जमीन स्तर पर इनका आधार जीरो है ।
सूत्रों का कहना है पार्टी ने लीडरशिप की कमी के चलते पार्टी को पंजाब में भारी नुकसान हो रहा है । पिछले 2017 के विधान सभा चुनाव में भाजपा को सिर्फ 3 सीट मिली थी । आज के जो हालत है, उस तो लग रहा है के 2022 के विधान सभा चुनाव में भाजपा खाता भी खोल पाएगी या नहीं। अगर लीडरशिप ऐसी रही तो भाजपा पंजाब में जो थोड़ा आधार बचा है, वह भी विधान सभा चुनाव तक खो देगी ।
हाल ही में बंगाल चुनावों से पहले भी भाजपा ने वहां मिशन-200 का बड़ा लक्ष्य अपने सामने रखते हुए बंगाल चुनावों में अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। यहां तक कि बंगाल के चुनावों में प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और भाजपा शासित कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने भी वहां जाकर प्रचार किया था। बावजूद इसके मिशन-200 एक दूर की कौड़ी साबित हुआ और वहां भाजपा अपने लक्ष्य से आधी सीटें भी नहीं जीत पाई, महज 76 सीटें ही अपने नाम कर पाई। लेकिन इसे भाजपा की नाकामी नहीं माना गया क्योंकि 2016 के बंगाल चुनावों में भाजपा के पास सिर्फ 3 सीटें ही थी। भाजपा 3 से 76 जरूर पहुंची।
नेत्तृत्व का संकट
पंजाब भाजपा की सबसे बड़ी मुश्किल राज्य में एक ऐसे नेता की कमी है, जिसकी लीडरशिप में वह अगले चुनाव लड़ सके। पंजाब भाजपा के पास राज्य स्तरीय एक चेहरा तक नहीं है। इतना ही नहीं पंजाब में भाजपा के पास ऐसे 60 नेता तो दूर बल्कि दस नेता भी नहीं हैं, जिनकी जनता में स्वीकार्यता हो और फ़िलहाल जो नेता हैं, उन्होंने राज्य में पार्टी को काफी हद तक सेंट्रलाइज्ड कर दिया है। साफ़ तौर पर कहा जाए तो पंजाब में भाजपा का जो मौजूदा ढांचा है, उसके चलते भी राज्य कई बड़े चेहरे भाजपा से जुड़ने में कतरा रहे हैं और इसी के कारण राज्य के कई नेता भाजपा को हाल ही में छोड़ कर जा भी चुके हैं। मिशन-60 से पहले भाजपा को इसे दुरुस्त करना पड़ेगा।
बंगाल से बिलकुल अलग है पंजाब
बंगाल और पंजाब इन दोनों राज्यों की राजनीति एक-दूसरे से बिलकुल अलग है, ऐसे में भाजपा को पंजाब के लिए अलग रणनीति बनानी पड़ेगी। बंगाल में भाजपा का सीधा मुकाबला ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस से था, अन्य कोई पार्टी इन दोनों के नजदीक भी नहीं थी। लेकिन पंजाब में हालात बिलकुल अलग हैं। पंजाब की मौजूदा राजनीति में इस समय मुकाबला त्रिकोणीय हैं। जिसमे कांग्रेस, अकाली दल और आम आदमी पार्टी एक दूसरे के मुकाबले में हैं और भाजपा इन तीनों के बाद जाकर कहीं चौथे नंबर पर आती है। देखा जाए तो पंजाब में इस समय भाजपा 60 तो क्या 6 सीटें जीतने के काबिल नजर नहीं आ रही है।
किसान आंदोलन के चलते बैक फुट पर है भाजपा, बेअदबी मामले में भाजपा बिलकुल अलग-थलग
तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ सबसे बड़ी आवाज पंजाब से ही उठी है और पंजाब में आज भी यह तीनों कृषि कानून एक बड़ा मुद्दा हैं, जिसको लेकर पंजाब खासतौर पर ग्रामीण इलाकों में भाजपा के खिलाफ काफी रोष है। यहां तक कि इस रोष का खामियाजा पंजाब भाजपा के कई नेताओं को उठाना पड़ा है। वहीँ बेअदबी का मामला जो कि हाल ही में हाईकोर्ट के एक फैसले से फिर से राज्य का एक बड़ा मुद्दा बन गया है, उस मुद्दे को लेकर कांग्रेस, अकाली और आप ही लगातार सुर्ख़ियों में बने हुए हैं और भाजपा इस पुरे मुद्दे से कहीं अलग नजर आ रही है।